मैं अलग था

मैं अलग था,
नरम, कोमल सा ह्रदय लेकर,
इठलाता हुआ चलता था.
मासूम सा चेहरा
मुस्कराहट बिखेरता था.
हर फ़िक्र से बेफिक्र होकर,
न जाने किसकी धुन पर,
गुनगुनाता रहता था.

नहीं जानता था मैं ‘माँ ‘ का अर्थ,
न ही ‘पापा ‘ का जानता था.
‘तू-तू ‘ करके बोलता था,
पर फ़िर भी अपने से वो लगते थे,
उनके साथ मैं खेलता था,
पापा के कंधों पर घूमता था,
माँ के आँचल में सोता था.

पर आज,
आज है एक कठोर हृदय,
एक महीन, झिलमिल,कोमल परत आवरण है जिसका,
ये तभी धड़कता है,
जब भाग रहा होता हूँ मैं,
किसी मुसीबत से.
छिपता फिरता हूँ मैं अपना चेहरा लेकर,
की कहीं कोई इसका सच न जान ले,
आज मैं गा अच्छा लेता हूँ पर,
ये मधुर आवाज दरअसल
पर्दा है इस मन की कड़वाहट का.

आज मुझे पता है अर्थ,
माँ का भी, पापा का भी,
‘आप-आप ‘ करके बोलता हूँ,
कोशिश करता हूँ आदर देने की,
पर शायद अपनापन कहीं खो गया है,
अपना ही घर आज ‘गेस्ट हाउस’ बन गया है.
खो गया है कहीं,
वो मखमल सा अहसास करता कंधा,
वो बिस्तर सा लगता आँचल भी,
कहीं खो गया है.
शायद मैं ही कहीं खो गया हूँ,
अपनी ही दुनिया में,
जहाँ मैं हूँ और शायद सिर्फ मैं ही हूँ.
कहने को कुछ दोस्त भी हैं,
पर शायद वो ‘दोस्ताना’ भी कहीं खो गया है.

छोटी सी है न मेरी दुनिया?
नहीं,कतई नहीं,
यह अनंत है,असीमित,विशाल,
यहाँ पसरा पड़ा है हर तरफ,
सिर्फ अँधेरा और एक कोने में ‘मैं ‘.
मृग हूँ मैं,अपने ही बनाए मरु का,
एकमात्र तारा,अपनी ही बनाई दुनिया का.
नहीं जानता मैं कैसे हुआ ये सब,
किसी को दोष भी नहीं दे सकता,
शायद मैं ही दोषी हूँ,
शायद मैं ही अलग हूँ.
मैं तब भी अलग था,
मैं अब भी अलग हूँ.
शायद!

Kaun Thi Wo

Aim HighImage by HuNo (On & Off) via Flickr

आज फिर वो मुझे मिली,
घना कोहरा मुझे उसे पहचानने से रोक रहा था,
पर बादलों को चीरती चांदनी की किरणें,
उसके होने का अहसास करा रहीं थी.
उसने मेरा हाल पूछा,
पर मैं जवाब दे सका.
उसने फिर पूछा,"क्या सोच रहे हो?"
मैंने कहा,"तुम्हें कहीं देखा है."
हमारे बीच की दूरी को थोडा बढ़ाते हुए वो बोली,
"तुम फिर मुझे नहीं पहचान पाए,
रोज तो देखते हो मुझे."
मैंने प्रश्न किया,"पर कहाँ ?"
जवाब मिला," क्षितिज पर,
जब मैं हाथ हिला रही होती हूँ."
रहस्य के सागर में डूबते हुए मैंने कहा,
" पर क्षितिज तो अनंत पर है,
मुझे तो रास्ता भी नहीं पता."
उसने कहा,"सच है, तुम्हें रास्ता नहीं पता."
ये कहकर वो जाने लगी.
मैंने टोकते हुए कहा,
"पर अपना नाम तो बताती जाओ."
उसने कहा,"मैं मंजिल हूँ."
इतना सुनते ही भोर की पहली किरण ने मेरी आँखें खोल दी.
एक और सपना टूट गया,
एक और रात बीत गयी,
मंजिल मुझसे और दूर हो गयी.
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Hans

पास है कोई मेरे, साथ है कोई मेरे,
अकेले चल रहा हूँ, किसी का कोई डर है।
रास्तों की ख़बर है, दिख रही लहर है,
मुश्किल ये डगर है, कुदरत का ये कहर है।

हवा से कह रहा हूँ, दिशा जरा बता दे,
नदी से कह रहा हूँ,रह कोई दिखा दे,
पर दे रहे जवाब, बने हैं ये नवाब,
मगर मैं चल रहा हूँ, चलता जा रहा हूँ।

की बहुत है कोशिश, अपने मन को समझाने की,
भटक जाए कहीं तू, सोच ले अभी भी,
पर मन सुन रहा है, तन सुन रहा है,
जाने किसकी सुन के, ये चले जा रहे हैं।

कवि ये बैठा था, लिखने अलग विषय पर,
शीर्षक अलग था, भाव भी अलग था,
सूख चुके वृक्ष छाँव दे रहे हैं,
जाने किसकी धुन पर,ये हाथ थिरक रहे हैं।

याद रही थी, बच्चन की मधुशाला,
उनका वो प्रिय प्याला, वो सुरमयी हाला,
सरस्वती के सुर में ये 'हंस 'गा रहा है,
जाने किसकी याद में ये दिल धड़क रहा है।

Kaash! Main Shiv Hota

काश मैं शिव होता
काश मैं शिव होता तो
शिवानी होती मेरी अर्धांगिनी.
मेरी भी पूजा होती,मेरे नाम की माला जपी जाती,
हर सोमवार मेरे लिए व्रत रखा जाता.
सौभाग्यशाली होता मैं क्यूंकि,
हर हफ्ते करवाचौथ होता.
काश मैं शिव होता .

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Kaash! Main Shiv Hota,
Kaash! Main Shiv Hota To,
Shivani Hoti Meri Ardhangini,
Meri Bhi Pooja Hoti, Mere Naam Ki Maala Japi Jaati,
Har Somwar Mere Liye Vrat Rakha Jaata,
Sobhagyashaali Hota Main Kyunki,
Har hafte Karwachauth Hota,
Kaash! Main Shiv Hota.

Dont Lose Hope!!!

हैरान हूँ मैं,
पर हताश नहीं हूँ.
परेशान हूँ मैं
पर निराश नहीं हूँ .

फिर उगेगा सूरज,
पर दिशा अलग होगी,
फिर बहेंगी नदियाँ,
पर राह अलग होगी,
फिर चहचाहयेंगे पक्षी,
पर चहचहाहट अलग होगी,
फिर खिलखिलाएँगे बच्चे,
पर खिलखिलाहट अलग होगी.

फिजा बदलेगी,
हवा बदलेगी,
आने वाली सुबह,
देश का समां बदलेगी.

आज मैं हारा नहीं हूँ,
बस मेरा 'हार' गया है.
कल मैं फिर जीतूँगा,
ये वक़्त मुझसे कह गया है.

बदलाव तो विकास का प्रतीक है,
प्रयोग तो लोकतंत्र की नींव है,
करने दो प्रयोग उन्हें, जरा वो भी आजमालें,
इसी में भारत की जीत है, इसी में मेरी जीत है .

Uljhan

देखते रहे वो मंजिलों के सपने,
पर रास्ते सपनों में दिख न पाए.
खाते रहे वो कुछ करने की कसमें,
पर स्वार्थ को रास्ते से हटा न पाए.

कहते रहे वो की कल से शुरू करेंगे,
पर कल के बारे में कल से ही पूछते रहे.
अब ये कल कब आएगा, न उन्हें पता है न मुझे,
इसी उलझन में राष्ट्र उलझते रहे.

ऊँचाई पर पहुँचने की बड़ी जल्दी है उन्हें ,
पर गहराई का डर भी वो मिटा न पाए.
आसमान में उड़ना भाता है उन्हें,
पर जमीनी हकीकत भी वो समझ न पाए.

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Dekhte Rahe Wo Manjilon Ke Sapne,
Par Raste Sapnon Mein Dikh Na Paaye.
Khate Rahe Wo Kuch Karane Ki Kasmein,
Par Swarth Ko Wo Raste Se Hata Na Paaye.

Kahte Rahe Wo Ki Kal Se Shuru Karenge,
Par Kal Ke Baare Mein Bhi Kal Se Hi Poochte Rahe.
Ab Ye Kal Kab Aayega Na Unhein Pata Hai, Na Mujhe,
Isi Uljhan Mein Rashtra Bhi Ulajhte Rahe.

Unchai Par Pahunchne Ki Jaldi Hai Unhein,
Par Gahrai Ka Darr Abhi Wo Mita Na Paaye.
Aasmaan Mein Udna Bhaata Hai Unhein,
Par Jameeni Haqueeqat Bhi Wo Samajh Na Paaye.